हालात के ज़ेर ए असर इधर कुछ जल्दी जल्दी रचनाएं आ गईं इस ब्लॉग पर
लेकिन पिछली ग़ज़ल से इस ग़ज़ल के दरमियान
तीन कविताओं ने अपना मक़ाम
हासिल कर लिया
आज
फिर एक ग़ज़ल के साथ हाज़िर हूं
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ग़ज़ल
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अह्द ओ पैमान जो देती है सियासत हम को
ऐसे वादों की है मालूम हक़ीक़त हम को
दौलत ओ ज़र से चकाचौंध हुई है दुनिया
आज सीरत की नहीं होती ज़ियारत हम को
साथ थी बाद ए सबा जब तो ये सोचा भी न था
इक ख़लिश देगी ये सूरज की तमाज़त हम को
हम नई नस्ल को दे पाएं तो हो फ़र्ज़ अदा
जो कि अजदाद ने सौंपी थी विरासत हम को
उन की मशकूक निगाहों ने भरम तोड़ दिया
इक यक़ीं भी नहीं दे पाई रिफ़ाक़त हम को
कितने तब्दील हों माहौल मगर करनी है
क़द्र ओ तहज़ीब ओ तमद्दुन की हिफ़ाज़त हम को
मुज़तरिब दिल है ’शेफ़ा’ रूह तड़प उठती है
कितने ज़ख़्मों की कसक देगी मुहब्बत हम को
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सीरत =चरित्र ; ज़ियारत = दर्शन ; बाद ए सबा = सुबह की ठंडी हवा ; तमाज़त = गर्मी
ख़लिश = बेचैनी; अजदाद = पूर्वज ; रिफ़ाक़त =दोस्ती ; तब्दील = परिवर्तित
क़द्र = मूल्य(values ) ; तहजीब ओ तमद्दुन = संस्कृति और सभ्यता ; मुज़्तरिब = बेचैन
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