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शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

तुम्हारे नाम................................

आज यूं तो कोई विशेष बात नहीं ,मित्रता दिवस भी नहीं ,परंतु मन के भावों के प्रकटीकरण के लिये किसी विशेष दिवस की प्रतीक्षा क्यों करूं ? आज मैं अपने मन के ये उदगार समर्पित करती हूं अपनी बेहतरीन दोस्त "वन्दना अवस्थी दुबे " को ,सर्वशक्तिमान से दुआ है कि उन का जीवन सदा प्रकाशमय रहे ,कभी कोई दुख की बदली भी न छाए ( आमीन ) 

तुम्हारे नाम ...............
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ऐ मेरी दोस्त ,
मेरी साथी सुन,
तू मेरे वास्ते  क्या है
ये बताऊं कैसे?
 ऐसे अल्फ़ाज़ बने ही नहीं शायद अब तक
जिन से मैं पेश करूं तेरे लिये अपने ख़याल
जब भी तकलीफ़ मुझे कोई हुई
तूने दी मुझ को वो हिम्मत
कि मैं सह पाऊं उसे
तू ने हर छोटी सी ख़्वाहिश 
भी मेरी पूरी की
मेरी छोटी सी सफलता पे भी 
तू यूं ख़ुश थी
जैसे इक मां का हो सपना पूरा
चाहे तू ख़ुद भी हो डूबी 
किसी कठिनाई में
तू ने की दूर मेरी चिंताएं
हो मेरी आंख में आंसू 
तो बिलक उट्ठे तू
और जो मुस्कान लबों पर देखे
खिलखिलाने लगे तू साथ मेरे

मेरे ज़ख़्मों के लिये मरहम तू
मेरी ख़ुशियों का लिये परचम तू
मेरी मुश्किल में सहारा बन कर 
तू मेरे साथ रहा करती है
मेरी कमियों को बता कर तू ने 
बारहा रोका मुझे ग़लती से

दोस्ती पर है मुझे नाज़ तेरी
तू है मोहसिन मेरी ,हमराज़ मेरी

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