सरहद पर तैनात जाँबाज़ सिपाहियों की नज़्र एक नज़्म
इंतेज़ार
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मुझे यक़ीन है आऊँगा लौट कर इक दिन
तुम इंतेज़ार की घड़ियों का मान रख लेना
ये कह के आ गया सरहद प फ़र्ज़ की ख़ातिर
और आरज़ू के लिये अपनी बन गया जाबिर
वो छोड़ आया है आँसू भरी निगाहों को
वो छोड़ आया दुआ में उठे कुछ हाथों को
वो अपनी बच्ची को सोता ही छोड़ आया है
उसे भी छोड़ के आया कि जिस का जाया है
बस अपने साथ में लाया है कुछ हसीं लम्हात
वफ़ा की, प्यार की,शफ़क़त की ख़ूबतर सौग़ात
सहारे इन के गुज़ारेगा कुछ सुकून के पल
वो मुश्किलों के निकालेगा सारे ही कस-बल
वो अपने मुल्क की हुरमत का मान रक्खेगा
और उस की आन के बदले में जान रक्खेगा
ये चन्द लम्हे जो फ़ुरसत के उस को मिलते हैं
तो उस के अपनों की यादों के फूल खिलते हैं
उभरने लगता है ख़ाका कि मुन्तज़िर है कोई
उभरने लगती है परछाईं एक बच्ची की
जो अपनी नन्ही सी बाँहें खड़ी है फैलाए
कि कोई गोद में उस को उठा के बहलाए
कि जिस की प्यार भरी गोद में वो इठलाए
जो उस के नख़रे उठाए और उस को फुसलाए
उभरने लगते हैं कुछ लब दुआएं करते हुए
उभरने लगते हैं सीने वो फ़ख़्र से फूले
उभरने लगती है मुस्कान एक भीगी सी
उभरने लगती हैं आँखें कि जिन में फैली नमी
चमकने लगते हैं सिंदूर और बिंदिया भी
हो उठती गिरती सी पलकों में जैसे निंदिया भी
प एक झटके में मंज़र ये सारे छूट गए
ख़लत मलत हुए चेहरे तो धागे टूट गए
हज़ारों मील की दूरी प सारे रिश्ते हैं
चराग़ यादों के बस यूँ ही जलते बुझते हैं
नई उमीद के वो तार जोड़ लेता है
यक़ीं के साथ ही अक्सर ये गुनगुनाता है
मुझे यक़ीन है आऊँगा लौट कर इक दिन
तुम इंतेज़ार की घड़ियों का मान रख लेना
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मुझे यक़ीन है आऊँगा लौट कर इक दिन
जवाब देंहटाएंतुम इंतेज़ार की घड़ियों का मान रख लेना
बहुत शानदार नज़्म है इस्मत...
शुक्रिया वंदना
हटाएंइस्मत आपी! बाज नज़्में ऐसी होती हैं, जिनपर कुछ कहना, उस शाहकार को बौना करने सा लगने लगता है! ऐसी नज़्में, एहसासात को रूह से महसूस करने के लिए होती हैं और उन्हें लफ्ज़ ब लफ्ज़ अपने दिलो दिमाग़ में बिठा लेने को होती हैं!
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए आँखें नम होती चली गईं. मैं वैसे भी इस मामले में बड़ा कमज़ोर इंसान हूँ. कई ऐसी ही नज़्में ज़हन में ताज़ा हो गईं, लेकिन आज उनका ज़िक्र नहीं! बस उन जवानों के जज़्बे और आपके कलम के सामने सर झुका रहा हूँ!
बहुत बहुत शुक्रिया सलिल जी आप के हौसला अफ़्ज़ा कमेंट का मुझे इंतेज़ार रहता है
हटाएंबहुत ही शानदार नज़्म की प्रस्तुति। मेरे ब्लाग पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन का ७ वां बलिदान दिवस , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंनज़्म अपने आप में मुकम्मल बन पड़ी है
जवाब देंहटाएंदर्ज जज़्बात, दर्द के अहसास की शिद्दत को महसूस करवाने की हद तक कामयाब रहे हैं
मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं "दानिश"
Bahut khoob
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली रचना......बहुत बहुत बधाई.....
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