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गुरुवार, 30 मई 2013

एक हिंदी ग़ज़ल प्रस्तुत करने का साहस कर रही हूँ
जो कमियाँ हों उन से अवगत कराने की कृपा अवश्य करें
धन्यवाद !
ग़ज़ल

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हम कर्तव्यों को पूर्ण करें, माँगें केवल अधिकार नहीं
मानव से मानव प्रेम करे,संबंधों का व्यापार नहीं

जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं

जैसे सागर में सरिता हो,जैसे पुष्पों से भ्रमर मिले
निस्सीम प्रेम आधार बने, उपकार रहे अपकार नहीं

नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं

कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
सब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं

सर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं

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45 टिप्‍पणियां:

  1. जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
    उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं
    क्या बात.... जितनी सुन्दर उर्दू गज़ल होती है तुम्हारी, उतनी ही खूबसूरत ये हिंदी ग़ज़ल है. आनन्दम....

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. आप को आनंद आया हमारे लिये यही बहुत है "मैम" :):p

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  2. सर्वस्व निछावर करने को,तय्यार है सैनिक सीमा पर
    है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं

    बहुत सही कहा है...देश प्रेम की भावना ही सबसे बड़ा बल
    ख़ूबसूरत ग़ज़ल

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  3. नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
    आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं ...

    आप माहिर हैं अपनी बात को स्पष्ट कहने में .. फिर चाहे जो भी भाषा हो ... बहुत ही सुन्दर भावों को शेरों में तब्दील किया है ... लाजवाब ...

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  4. कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
    सब भावों के संवाहक हैं ,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं
    Aha ha...Lajawab...Tum jis Zabaan likhog kamaal hi likhogi kyun ki tumhaare khayalaat behad umda hain...
    Maza aa gaya bahna.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नीरज भैया
      आख़िर बहन किस की हैं :)

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  5. हम सब कर्तव्य से परे सिर्फ अधिकार के प्रयोग में बदहवास अकेले हो गए हैं .... ग़ज़ल बहुत अच्छी है

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  6. सुभानाल्लाह |


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  7. कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
    सब भावों के संवाहक हैं,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं !

    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखती हैं, आप ...
    आनंद आ जाता है ..एक एक शब्द सार्थक है , दिल को छूता है !
    बहुत बहुत बधाई ...

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  8. नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
    आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं ...

    bahut sundar bhav hain ....aaj ke aapa dhapi ke mahaul men ek thahraav si deti rachna ....!!
    bahut sundar .

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    1. आप की प्रशंसा भी काव्य का पुट लिये है अनुपमा जी
      बहुत बहुत धन्यवाद !

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  9. क्या बात है इस्मत, अब शुद्ध हिंदी में भी...? अच्छे भावों का संवहन करती सुन्दर रचना...! साधुवाद!
    'सब भावों के संवाहक हैं, केवल सज्जा-शृंगार नहीं!'
    'है देश प्रेम ही बल उसका, बंदूक़ नहीं , तलवार नहीं!'
    बहुत खूब, अति सुन्दर...!
    सस्नेह--आ.

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    1. आनंद भैया आप ने प्रशंसा कर दी मानो मुझे तो सर्टिफ़िकेट मिल गया :)
      आप का स्नेह और आप की ये उत्साहवर्धक टिप्पणी मेरे लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है
      बहुत बहुत धन्यवाद !!

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  10. बहुत सुन्दर , भावपूर्ण ...आप उर्दू ही नहीं हिंदी ग़ज़ल लिखने में भी पूर्ण कुशल हैं ...

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  11. बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय ....

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  12. बहुत सुदर रचना
    बहुत सुंदर

    विषय और प्रस्तुतिकरण दोनो बेजोड़

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  13. इस्मत आपा!! इस कविता/गज़ल पर कोई भी कमेन्ट नहीं किया जा सकता है.. बस दिल से महसूस किया जा सकता है... इतने खूबसूरत भाव जितनी खूबसूरती से आपने बयान किया है वो आजकल कम दिखता है!! याद आ गयी बचपन की कविता -
    जो भरा नहीं है भावों से/बहती जिसमें रसधार नहीं
    वो ह्रदय नहीं वह पत्थर है/जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद हमेशा ख़ुश रहिये सलिल
      धन्यवाद इन पंक्तियों को याद कराने के लिये भी
      मैं जितनी देर ये ग़ज़ल लिखती रही मेरे दिमाग़ में ये बात रही कि इस बहर पर और रदीफ़ क़ाफ़िये पर मैं ने क्या पढ़ा है ,पर अब याद आया

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  14. धन्यवाद भागीरथ जी
    अवश्य आऊंगी ब्लॉग पर

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  15. नि:स्वार्थ प्रेम के भाव लिये ये कौन है मन के द्वार खड़ा
    आगंतुक तुम ही बतला दो, क्यों पहले आए द्वार नहीं.....बेहतरीन ... :)

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    1. ख़ुश रहो अपर्णा
      ढेरों दुआएं और शुभकामनाएं तुम्हारे लिये :)

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  16. ग़ज़ल का हर शेर स्वयं ही अपने आप को कहलवा रहा है ... भाषा और भावों की ऊंचाई से काव्य का स्तर और भी निखर आया है .. शिल्प और बुनावट की दृष्टि से भी यह एक कामयाब रचना है ... भाषा के अनुशासन का पालन करना बहुत जोखिम भरा कार्य है
    बधाई स्वीकारें

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्द्धन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आप के प्रमाण पत्र की इस रचना को आवश्यकता थी

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  17. जिस धरती माँ में सहने की शक्ति का पारावार न हो
    उस का मत इतना दमन करो ,वह कह दे तुम स्वीकार नहीं

    बेहतरीन,शुभकामनाएं,

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  18. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है आपा ... दाद क़ुबूल करें !

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  19. शेफा कज़गाँवीँ शीर्षक से ब्लोग पढा ,
    बेहतरीन . शुक्रिया
    आशा है और जल्दी एसी ही सुंदर और भाव प्रवण रचनाएँ पढने को मिलेँगी

    क्षेत्रपाल शर्मा , शांतिपुरम , सासनी गेट अलीगढ 202001

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  20. अद्भुत है दी , हर पंक्ति में सप्रेषित भाव प्रभावशाली है . बहुत सुन्दर ग़ज़ल .

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  21. कंगन,चूड़ी,पायल,बिछिया,मेंहदी,रोली,झूमर,टीका
    सब भावों के संवाहक हैं,केवल सज्जा-श्रंगार नहीं !

    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल लिखती हैं, आप
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

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  22. हाँ संजय बहुत दिनों बाद तुम ने दर्शन दिये ,,सब ठीक है न ?

    बहुत बहुत शुक्रिया

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया