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मंगलवार, 7 मई 2013

एक महीने के वक़फ़े के बाद एक ग़ज़ल के साथ फिर हाज़िर हूँ
शायद पसंद आए

ग़ज़ल
***********

धड़कनें हों जिस में, वो ऐसी कहानी दे गया
चंद   किरदारों की कुछ यादें पुरानी दे गया
*****
टूटे    फूटे   लफ़्ज़   मेरे   शेर   में   ढलने   लगे
मेरा मोह्सिन मुझ को ये अपनी निशानी दे गया
*****
रोज़ ओ शब की रौनक़ें, वो क़हक़हे, वो महफ़िलें
साथ  अपने  ले  गया  और  बेज़बानी   दे   गया
*****
क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
बीज  ख़ुद  बोए  थे  तुम  ने , बस  वो  पानी  दे गया
*****
ज़िंदगी   ख़ुद्दारियों   के   साए   में   ही   कट   गई
बस  विरासत   में वो  अपनी  जाँफ़ेशानी   दे गया
***** 
माँ का आँचल ,बाप की शफ़क़त के साए का सुकूँ
दूर   सरहद  पर  जवाँ  हर   शादमानी   दे  गया 
*****
इक मता’ ए फ़िक्र ओ फ़न ,हाथों में तेरे सौंप कर
ऐ  ’शेफ़ा’  वो   तेरे   ज़िम्मे   पासबानी  दे  गया
*******************************************
किरदार= चरित्र; मोहसिन= जिस ने उपकार किया हो
ख़ताएं= दोष; जाँफ़ेशानी= कड़ी मेहनत; शफ़क़त= स्नेह
शादमानी= ख़ुशी; मता’ ए फ़िक्र ओ फ़न= चिन्तन और कला की दौलत;
पासबानी= रक्षा

30 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत बहुत शुक्रिया मृदुला जी

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    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    3. टूटे फूटे लफ़्ज़ मेरे शेर में ढलने लगे
      मेरा मोह्सिन मुझ को ये अपनी निशानी दे गया
      *****
      रोज़ ओ शब की रौनक़ें, वो क़हक़हे, वो महफ़िलें
      साथ अपने ले गया और बेज़बानी दे गया
      *****
      क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
      बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया
      *****
      ज़िंदगी ख़ुद्दारियों के साए में ही कट गई
      बस विरासत में वो अपनी जाँफ़ेशानी दे गया
      *****
      माँ का आँचल ,बाप की शफ़क़त के साए का सुकूँ
      दूर सरहद पर जवाँ हर शादमानी दे गया

      waaaaaaaaaaaaah waaaaaaaaaaaaaaah Zindabaad Zindabaad koi jawab nahi kya kahne hain

      हटाएं
    4. ख़ुश रहो बेटा ,,सलामत रहो

      हटाएं
  2. क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
    बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया

    वाह ...बहुत खूबसूरत गज़ल ....

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    1. आप का स्नेह है संगीता जी ,,धन्यवाद ,,बस ये स्नेह बनाए रखियेगा

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  3. @
    क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
    बीज ख़ुद बोए थे तुम ने, बस वो पानी दे गया !

    कमाल की कलम और समझ पायी है आपने ..
    तारीफ के शब्द नहीं हैं, सच्ची ..

    उर्दू के शब्दों का हिंदी अर्थ बहुतों का भला करेगा ! आभार आपका

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    1. शुक्र्गुज़ार हूं सतीश जी
      आप लोगों की ये तारीफ़ें बहुत हौसला देती हैं

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  4. खूबसूरत ग़ज़ल. सारे शेर बहुत प्यारे लगे.

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  5. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है इस्मत दी....
    कई नए और सुन्दर लफ्ज़ भी सीखने मिलते हैं...आप मुश्किल शब्दों के मायने जो लिख देतीं हैं.

    शुक्रिया
    अनु

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    1. ्ख़ुश रहो अनु
      और अपनी दी का इसी तरह हौसला बढ़ाती रहो

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  6. गज़ल पर अपनी बात रखने से पेशतर एक ओब्जेक्शन आपके हुज़ूर में पेशेखिदमत है... आपने एक महीने के वाक़फे के बाद गज़ल कही ये तो ठीक है, लेकिन "शायद आपको पसंद आये" मुझे पसंद नहीं आया.. इस्मत आपा, कोई भी शायर जब कलाम कहता है यह मानते हुए कि यह उसका बेहतरीन शाहकार है.. समाईन के तास्सुरात अपनी जगह.. लिहाजा आप ऐसा ना लिखें कभी, हमें बुरा लगता है!!
    गज़ल हमेशा की तरह, सादाबयानी की मिसाल है और मानीखेज भी. लगता है कोई अपनी ज़िंदगी के तजुर्बात शेयर कर रहा हो. मतला पूरी गज़ल पढ़ने को मजबूर कर देने की सिफत रखता है और मकता एक रूहानी बयान.. सारे अशआर लाजवाब हैं, इस्मत आपा!!
    इस्लाहियत के काबिल नहीं मैं लेकिन फिर भी बस ज़हन में आया तो कह दिया.. आप बेफिक्री से मेरे कान खींच सकती हैं.. मतले को इस तरह कहा गया होता तो कैसा होता:
    .
    धड़कनें जिस में हों, वो ऐसी कहानी दे गया
    चंद किरदारों की कुछ यादें पुरानी दे गया!!
    .
    और ये शे'र कुछ इस तरह:
    .
    रोज़-ओ-शब की रौनक़ें, वो क़हक़हे, वो महफ़िलें
    ले गया सब साथ अपने, बेज़बानी दे गया!!
    .
    अब मैं चलूँ, वरना मेरी खैर नहीं!! सलाम आपा!!

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    उत्तर
    1. हमेशा की तरह ग़ज़ल का पूरा मुताले’आ करने के बाद आप का कमेंट आया जिस का इंतेज़ार भी था मुझे :)
      तह ए दिल से शुक्र्गुज़ार हूँ आप के ख़ुलूस के लिये भी और ग़ज़ल की पसंदीदगी के लिये भी
      दर अस्ल ये मिसरा यूँ है
      "धड़कनें पिनहाँ हों जिस में वो कहानी दे गया"

      आप अपने मशवरों से यूँही नवाज़ते रहें ,,मुझे ख़ुशी होती है :)

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  7. आज की ब्लॉग बुलेटिन ' जन गण मन ' के रचयिता को नमन - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. ज़िंदगी ख़ुद्दारियों के साए में ही कट गई
    बस विरासत में वो अपनी जाँफ़ेशानी दे गया

    लाजबाब .............

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    1. शुक्रिय शिखा ,,तुम्हारा इंतेज़ार रहेगा मुझे

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  9. क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
    बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया
    क्या करूं...कहां जाऊं...दस बार पढ लिया ये शेर..मन ही नहीं भरा अब भी :( सोचती हूं हाथ पर लिख लूं..:)

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    उत्तर
    1. ऐसा करो हाथ पर खुदवा लो, कुछ भी करो लेकिन मेरी प्रेरणा ऐसे ही बनी रहो

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  10. क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
    बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया ..

    हर बार की तरह ... लाजवाब गज़ल ... हर शेर सोने पे सुहागा ...
    लाजवाब ...

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  11. इस्मत बहना तुम्हारी ग़ज़लों का हर शेर इस कदर खूबसूरत और मुकम्मल होता है की किसी एक को अलग से दाद देना ना-मुमकिन है . इसलिए इस पूरी ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करो और ऐसे ही एक से बढ़ कर एक लाजवाब ग़ज़लें कहती रहो।

    नीरज

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    उत्तर
    1. शुक्रिया नीरज भैया आप बस यूंही उत्साह वर्धन करते रहें मेरी घज़लों को झेल कर :)
      आल्लाह से दुआ है कि आप का साया यूँ ही आयम रहे हम सब पर (आमीन)

      हटाएं
  12. क्यों ख़ताएं उस की गिनवाते हो तुम शाम ओ सहर
    बीज ख़ुद बोए थे तुम ने , बस वो पानी दे गया.... बहुत खूब मामी ...लाजवाब ...

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  13. ख़ुश रहो अपर्णा और मेरा ब्लॉग पढ़ती रहो
    हा हा :)

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया