आज एक नज़्म के साथ हाज़िर हूँ शायद पसंद आए
" यही सदियों तलक होगा "
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यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
कि परवाना तड़पता है
शमा का दिल भी जलता है
ये इतना प्यार करती है
उसे दिल में बसाती है
मगर ये जानती भी है
मगर ये जानती भी है
अगर वो पास आएगा
तो उस कि जान जाएगी
इसी ग़म में वो घुलती है
इसी कोशिश में रहती है
इसी कोशिश में रहती है
मेरा परवाना बच जाए
भले वो पास न आए
मैं उस को देख तो पाऊं
तराने प्यार के गाऊं
मगर परवाने को देखो
अब उस को भी ज़रा समझो
शमा के गिर्द रहता है
और अपना सर पटकता है
नहीं मंज़ूर है उस को
जुदाई का कोई लम्हा
इसी उम्मीद में हर दम
शमा के गिर्द फिरता है
कभी तो वो बुलाएगी
कभी तो लबकुशा होगी
तो उस के पास जाएगा
और उस के अश्क पोछेगा
मगर जब ख़ामुशी से
मगर जब ख़ामुशी से
शमा बस जलती पिघलती है
तो फिर बेचैन परवाना
तो फिर बेचैन परवाना
शमा की सम्त बढ़ता है
और उस के प्यार की ख़ातिर
और उस के प्यार की ख़ातिर
वो जाँ अपनी गंवाता है
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
तड़पती है ,मचलती है
जलाती है वो दिल को
जलाती है वो दिल को
और फिर इस ग़म में घुलती है
जनाज़े पर वो परवाने के
जनाज़े पर वो परवाने के
जाँ अपनी भी खोती है
यही सदियों से होता है
यही सदियों से होता है
यही सदियों तलक होगा
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लबकुशा= बोलना /कहना ; सम्त=ओर ; जनाज़ा= शव
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लबकुशा= बोलना /कहना ; सम्त=ओर ; जनाज़ा= शव
मेरे आंसू का इक कतरा
जवाब देंहटाएंजो तेरी आंख से निकले
फना हो जाऊं उस पर मैं
दिल से इक आह ये निकले...
सच्ची मुहब्बत ख़ुदा की इबादत सरीखी होती है...
कमाल कर दिया .....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंमैंने कभी कुछ लिखा था --
परवाने की मौत पर शमा रोती है
उसकी हर अश्क की बूंद
परवाने के लिए होती है
परवाना शमा का दीवाना होता है
और उसकी मौत
शमा से ही होती है .....
वाह, यह तो एक खूबसूरत गीत है, मधुरता से भरा हुआ।
जवाब देंहटाएंतो फिर बेचैन परवाना
जवाब देंहटाएंशमा की सम्त बढ़ता है
और उस के प्यार की ख़ातिर
वो जाँ अपनी गंवाता है
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
तड़पती है ,मचलती है
जलाती है वो दिल को
और फिर इस ग़म में घुलती है
जनाज़े पर वो परवाने के
जाँ अपनी भी खोती है
इस्मत, कितनी खूबसूरती के साथ तुमने शमा और परवाने के दर्द को उकेरा है!! इस नज़्म को पढ के मन इसलिये भी प्रसन्न हुआ कि बरसों से बनी हुई शमा की अकड़ू सी छवि और परवाने की आवारा से दीवाने की छवि टूट गयी. वरना अब तक जहां भी इन दोनों का इस्तेमाल हुआ, बहुत स्तरीय अर्थों में नही हुआ. लेकिन तुम्हारी क़लम का कमाल देखो... कैसे शमा के दर्द को उभार के सामने ले आयी!! बहुत ही सुन्दर नज़्म. जन्मदिन की एक बार फिर बधाई. जन्मदिन तुम्हारा, और तोहफ़ा भी तुमने ही दिया!! क्या दरियादिली है :) :)
बहुत खूब, पढ़ने में आनन्द आ गया।
जवाब देंहटाएंशमाँ और परवाना का एक दुसरे के प्रति दीवानापन कभी तो कबीर की बाते याद दिलाता है "माया दीपक नर पतंग , भ्रमि भ्रमि इवे पडंत, कह कबीर गुरु ज्ञान ते एक आध उबरंत " तो कभी आत्मा परमात्मा का एकाकार होना याद दिलाता है . शायद इतना प्यार और रूमानियत और त्याग , ईश्वरीय गुण ही है . मंत्रमुग्ध हुआ .
जवाब देंहटाएंबढ़िया नज़्म है. जन्मदिन मुबारक हो.
जवाब देंहटाएंशायद नहीं बिल्कुल
जवाब देंहटाएंपसंद आयी है
नज्म बहुत ही
उम्दा बनाई है !
वाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत खूबसूरत नज़्म इस्मत जी.
सादर
अनु
तो फिर बेचैन परवाना
जवाब देंहटाएंशमा की सम्त बढ़ता है
और उस के प्यार की ख़ातिर
वो जाँ अपनी गंवाता है
शमा भी मुज़्तरिब हो कर
तड़पती है ,मचलती है
जलाती है वो दिल को
और फिर इस ग़म में घुलती है
जनाज़े पर वो परवाने के
जाँ अपनी भी खोती है
बेमिसाल
खुबसूरत नज्म ...
जवाब देंहटाएंशमा भी परवाने को इतना चाहती है ..
बहुत सुंदर !
शमा और परवाने की दास्तान एक नए रंग में...बहुत खूब. दोनों की संवेदना बड़ी खूबसूरती के साथ उभर कर सामने आई है. अच्छी नज़्म है. मुबारक हो...
जवाब देंहटाएंbas aansu hi n nikle is milan par warna pyar me parwane to sabhi hote hain.
जवाब देंहटाएंयही सदियों से होता है
जवाब देंहटाएंयही सदियों तलक होगा
चलती आ रही है ..
बढिया प्रसतुति !!
नहीं मंज़ूर है उस को
जवाब देंहटाएंजुदाई का कोई लम्हा
इसी उम्मीद में हर दम
शमा के गिर्द फिरता है ...
प्रेम के सबसे प्राचीन प्रतीक ... शमा परवाने की दास्तां क्या कभी पुरानी होगी ... शायद जब तक ये दुनिया है प्रेमियों को इन्ही के मान से याद लिया जायगा ... शमा परवाने की दास्तां आपकी कलम से बहुत ही लाजवाब लगी ... शुभकामनायें ...
आप वाकई बहुत खूबसूरत लिखती हैं।
जवाब देंहटाएं............
International Bloggers Conference!
आप वाकई बहुत खूबसूरत लिखती हैं।
जवाब देंहटाएंबधाई।
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International Bloggers Conference!
शमा परवाना की दास्ताँ को
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़ देकर
आपने उन दोनों पर ही अहसान किया है
क़ुर्बान हो जाने का सादिक़ जज़्बा , यक़ीनन,
इस इबारत से और फले-फूलेगा !!
मुबारकबाद .
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारें, प्रतीक्षा है आपकी .
.
जवाब देंहटाएंआदरणीया दीदी,
क्या नज़्म लिखी है आपने … … … !
पाक मुहब्बत का यह जज़्बा ही तो मुहब्बत को ऊंचाइयां देता है …
इतने ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ ! और ऐसी रवानी !!
गुनगुनाते हुए पढ़ा तो डूबता चला गया …
इसी तरह दिल छू लेने वाली नज़्में और ग़ज़लियात पढ़ने का मौका देती रहें आप ।
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रक्षाबंधन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं
और
सादर प्रणाम दीदी !
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यही सदियों से होता है
जवाब देंहटाएंयही सदियों तलक होगा...
बहुत सुंदर लिखा है
ghazab ki lekhani hai apki,aaj pehli baar apke blog par aya,,afsos hai ab tak na aa pane ka.,.,
जवाब देंहटाएंउम्दा नज़्म .......
जवाब देंहटाएंपूज्य बाबूजी की एक डायरी में माखनलाल चतुर्वेदीजी ने लिखा था : "प्रेम को जब जाना तो समझा, वह प्रभु है !"
जवाब देंहटाएंतुम्हारी नज़्म जब पढ़ी तो मन की कुछ ऐसी ही कैफियत हुई ! शमा और परवाने पर जाने कितना कुछ लिखा गया है, लेकिन इन दोनों की प्रीति को तुम्हारी इस नज़्म ने पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया है... साधु-साधु !!
सस्नेह--आ.
वाह.....बेहद खुबसूरत।
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