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शनिवार, 26 नवंबर 2011

jazb e watan


आज २६ नवम्बर है और मैं 
एक नज़्म की शक्ल में खिराज ए अक़ीदत पेश करना चाहती हूँ उन शहीदों को जो अपने मुल्क की ख़ातिर खुद तो क़ुर्बान हो गए लेकिन अपने देशवासियों को  महफ़ूज़ कर गए 

जज़्ब  ए वतन
_____________ 

लोग बहबूदी ए मिल्लत का लबादा ओढ़े 
और चेहरों पे सजाए हुए मासूम से रंग 
कितने मजलूमों की इज़्ज़त को कुचल देते हैं
कितने मासूमों के अरमान मसल देते हैं
ख़ूबसूरत गुल ओ गुलज़ार की रौनक़ ले कर
बख़्शते  हैं उन्हें पुर ख़ौफ़  सा इक सन्नाटा 
ऐसे अशख़ास जो ईमान का सौदा कर के
 अपने हस्सास ज़मीरों को कुचल देते हैं
शर पसंदों की जमा'अत के ये शातिर मुहरे
बेकस ओ बे बस ओ मज़लूम से इंसानों को
अपनी चालों के शिकंजों में फंसा लेते हैं
और फिर अपनी नई क़ौम  बनाने के लिए
बर्बरीयत का हर इक खेल सिखा देते हैं
नाम पर मज़हब ओ मिल्लत के ये ख़ूँरेज़ी क्यों ? 
नाम इस्लाम का लेते हो तो बदकारी क्यों ?
ये वो मज़हब है जो इन्सान को इन्सान बनाए
ये वो मज़हब जो अ्ख़ूवत का ही एहसास कराए
नाम ले कर इसी मज़हब का चले आते हो 
औरतों , बच्चों पे भी रहम नहीं खाते हो 
बेगुनाहों के लहू से जो नहा लेते हो 
क्या समझते हो कि फ़िरदौस में घर लेते हो ?
इन यतीमों की सुए अर्श अगर आह गयी 
बस समझ लेना की फिर दीन भी ,, दुनिया भी गयी 

तेरे आक़ा ने कहा तुझ से जिहादी है तू 
ये बताया है की जन्नत का भी दा'ई है तू 
और शहादत की ही मंज़िल का सिपाही है तू 
इन में से कुछ भी नहीं सिर्फ़ फ़सादी है तू 

 आज दे मुझ को ज़रा चंद सवालों के जवाब 
माँओं की आँख में आंसू हों तो जन्नत कैसी ?
बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी ?
 धोके से मारते हो,, कैसे जिहादी हो तुम  ?
ख़ौफ़  ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम ?

चंद बातें तू समझ ले यही अच्छा होगा 
मेरे इस मुल्क की जानिब जो पलट कर देखा 
वो चमक होगी कि आँखें तेरी ख़ीरा  कर दे 
चूँकि  हैं ज़ख़्म हरे टीस सी इक उठती है 
जब भी मज़लूम कराहों की सदा आती है 
शातिर अज़हान  पे तू जल्द लगा ले पहरा 
 अपने नापाक इरादों को हटा दे वरना 
रोक देंगे तेरे बढ़ते हुए क़दमों को वहीँ 
ये जवानान ए वतन , शान ए वतन , जान  ए वतन 
और महफ़ूज़ भी रखेंगे वही आन ए वतन 
बस दुआएं हैं कि पूरा हो ये अरमान ए वतन
जल्द इन्साफ़ दिलाएं उसे अज़हान  ए वतन 
मुन्तज़िर आज भी है ख़ून ए शहीदान ए वतन  
  
                                       ________________________________________
बहबूदी = भलाई ; अश्ख़ास = शख़्स (व्यक्ति) का बहुवचन ; बर्बरीयत = बर्बरता ; बदकारी = बुरे काम
अ्ख़ूवत = भाईचारा ; फ़िरदौस = जन्नत ; दा'ई = दावा करने वाला ; ख़ीरा = चकाचौंध
 अज़हान = ज़हन का बहुवचन ;

29 टिप्‍पणियां:

  1. आज दे मुझ को ज़रा चाँद सवालों के जवाब
    माँओं की आँख में आंसू हो तो जन्नत कैसी ?
    बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी ?
    धोके से मारते हो कैसे जिहादी हो तुम ?
    खौफ़ ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम ?


    उफ्फ्फ...रोंगटे खड़े हो गया बहना...सुभान अल्लाह...शहीदों को इस से बेहतर खिराज ए अक़ीदत और क्या होगी...आपके ज़ज्बे को सलाम...हर इमानदार हिन्दुस्तानी की आवाज़ को आपने अपनी नज़्म में ढाला है...तारीफ़ के लिए मुकम्मल लफ्ज़ नहीं मिल रहे...वाह.

    नीरज

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  2. शहीदों को नमन ....
    इस प्यारी रचना के लिए आपका आभार !

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  3. आज के दिन आपकी ये नज़्म ... शहीदों को सलाम ..और आपकी लेखनी को ..नमन .

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  4. प्रत्‍येक शब्‍द भावमय करता हुआ ..बेहतरीन ।

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  5. आज दे मुझ को ज़रा चाँद सवालों के जवाब
    माँओं की आँख में आंसू हो तो जन्नत कैसी ?
    बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी ?
    धोके से मारते हो कैसे जिहादी हो तुम ?
    खौफ़ ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम ?
    ... इसे कहते हैं विचारों का सही जज्बा

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  6. तारीफ़ के लायक अल्फाज नहीं हैं मेरे पास| आपके जज्बे को सलाम करता हूँ |

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  7. तेरे आक़ा ने कहा तुझ से जिहादी है तू
    ये बताया है की जन्नत का भी दा'ई है तू
    और शहादत की ही मंज़िल का सिपाही है तू
    इन में से कुछ भी नहीं सिर्फ़ फसादी है तू

    चंद पंक्तियां यहां लिख दी हैं तुम्हारी नज़्म की, और सोच रही हूं कि कितनी मजबूती के साथ तुमने केवल अपनी नहीं, बल्कि हम सबकी बात, पूरे मुल्क की बात इस नज़्म के ज़रिए कह दी!!

    आज दे मुझ को ज़रा चाँद सवालों के जवाब
    माँओं की आँख में आंसू हो तो जन्नत कैसी ?
    बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी ?
    धोके से मारते हो कैसे जिहादी हो तुम ?
    खौफ़ ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम ?

    कब से ऐसे ही सवाल तो घुमड़ रहे हैं ज़ेहन में!! तुमने तो मेरे भावों को भी श्ब्द दे दिये. बहुत सच्ची नज़्म है इस्मत, एकदम दिल से लिखी गयी, बल्कि तक़लीफ़ से लिखी गयी. बहुत मन है, इस नज़्म पर एक कविता-पोसटर बनाने का, अगर तुम इज़ाज़त दो तो.

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  8. सवाल यह खत्‍म नहीं होते

    धोखे मन से गुम नहीं होते


    अमन चैन की राह में कांटे हैं

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  9. ये वो मज़हब है जो इन्सान को इन्सान बनाए
    ये वो मज़हब जो अखूवत का ही एहसास कराए
    .......
    आज दे मुझ को ज़रा चंद सवालों के जवाब
    माँओं की आँख में आंसू हो तो जन्नत कैसी
    बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी
    धोके से मारते हो कैसे जिहादी हो तुम
    खौफ़ ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम

    इस पुर-असर नज़्म के हवाले से
    समाज,कौम और मुल्क से जुड़े हुए
    कई ऐसे सवालों को छुआ गया है जिनका जवाब दे पाने में
    हम अक्सर नाकामयाब रहते हैं ....
    शब्दावली , कहीं अन्दर तक झकजोरे जा रही है
    बानगी में साहिर और फ़ैज़ की झलक भी मिल रही है
    वाह !!

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  10. आपा,
    जात से, धर्म से, मज़हब से...अब कोफ़्त होती है...

    इन सब से ऊपर वाला कम से कम मुझे तो दूर ही रखे..


    और फिर अपनी नयी कौम बनाने के लिए
    बर्बरीयत का हर इक खेल सिखा देते हैं ..

    यही सच है...

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  11. नाम इस्लाम का लेते हो तो बदकारी क्यों ?
    ये वो मज़हब है जो इन्सान को इन्सान बनाए
    ये वो मज़हब जो अ्ख़ूवत का ही एहसास कराए
    नाम ले कर इसी मज़हब का चले आते हो
    औरतों , बच्चों पे भी रहम नहीं खाते हो
    बेगुनाहों के लहू से जो नहा लेते हो

    लगा ले पहरा अपने नापाक इरादों को हटा दे वरना रोक देंगे तेरे बढ़ते हुए क़दमों को वहीँ ये जवानान ए वतन , शान ए वतन , जान ए वतन और महफ़ूज़ भी रखेंगे वही आन ए वतन

    बेहद सुंदर जज़बातों से भरपूर रचना ।

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  12. शर पसंदों की जमा'अत के ये शातिर मुहरे
    बेकस ओ बे बस ओ मज़लूम से इंसानों को
    अपनी चालों के शिकंजों में फंसा लेते हैं
    और फिर अपनी नई क़ौम बनाने के लिए
    बर्बरीयत का हर इक खेल सिखा देते हैं...
    बिल्कुल सही लिखा है इस्मत साहिबा...
    और हर अम्न पसंद हिन्दुस्तानी की जानिब से माकूल जवाब भी...मुबारकबाद.

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  13. बहुत खूबसूरत अंदाज़ में सच पर मबनी कलाम ....लाजवाब और हैरतंगेज़ कलाम ......वतनपरस्ती का इससे खूबसूरत जज्बा दूसरा नहीं हो सकता .....खूबसूरत तखलीक के लिए बहुत मुबारकबाद

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  14. "आज दे मुझ को ज़रा चंद सवालों के जवाब
    माँओं की आँख में आंसू हों तो जन्नत कैसी ?
    बेगुनाहों का तू क़ातिल है ,,शहादत कैसी ?
    धोके से मारते हो,, कैसे जिहादी हो तुम ?
    ख़ौफ़ ए अल्लाह नहीं कैसे नमाज़ी हो तुम ?"
    सबसे सुन्दर पंक्तियाँ । वाकई अच्छा लगा आपको पढकर।
    ज़ैदी जी, आपकी टिपण्णी मेरे ब्लॉग पोस्ट पर तो नहीं दिख रही, कारण मुझे भी मालुम नहीं लेकिन मेल में मुझे मिली थी आपने लिखा है मेरी बातों को अन्यथा नहीं लेंगे। मैं स्पष्ट बता दूँ मैं किन्ही की बातों को अन्यथा नहीं लेता, इसका सवाल ही नहीं उठता। मैंने जो लिखा बेशक अपने नजरिये से लिखा है ज़रुरी नहीं सब सहमत हों। I write what I feel and welcome disagreements as well, so keep reading and do comment. बल्कि मैं तो ऐसे ही लोगों को ढूंढता हूँ जो सही बताये। अच्छा लिखा है, बेहतरीन लेख कहने वाले तो बहुत हैं लेकिन वास्तविक विवेचना और आलोचना करने वाले नहीं मिलते।और आलोचना का मतलब दुर्भावना नहीं होता। आपने अपने कमेंट में यह भी लिखा है कि आप जैसे उम्र के लोगों को आशावादी होना चाहिए। बेशक, मैं भी निराशावादी नहीं हूँ। लेकिन इंसानी फ़ितरत है कि उसके दिल को चोट पहुँचती है तो वह निराश होता है इस वजह से अगर ऐसी कोई चीज़ मुझमे या मेरे लेख में आपको दिखी तो उसे मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ। प्यार बेशक दुनिया में जिंदा है लेकिन ज़रूरत उससे भी बड़ी चीज़ हो गई है।जो मुझे महसूस हुई। धन्यवाद।

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  15. आपकी नज़्म पढ़ के साहिर लुधियानवी जी की नज्में याद हो आई ... बहुत ही गहरी ... और दिल से निकली आवाज़ है ... बहुत सी जुबानों को अपनी कलम का सहारा दे कर इस ज़ज्बे को लिखा है आपने ... नमन है आपकी लेखनी को ....

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  16. नज़्म ने दिल को छू लिया ! बार बार पढ़ने को जी चाहता है !

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  17. नज़्म की शक्ल में खिराज ए अक़ीदत लाजवाब है..... क्या खूब नज़्म है.... !!! शुक्रिया

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  18. बहुत ही जोशीली नज़्म है...कई सवाल उठाते हुए..
    काश सबलोग इस ज़ज्बात को समझ जाएँ...तो फिर ये दुनिया रहने लायक हो जाए
    बेहद अर्थपूर्ण रचना

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  19. तेरे आक़ा ने कहा तुझ से जिहादी है तू
    ये बताया है की जन्नत का भी दा'ई है तू
    और शहादत की ही मंज़िल का सिपाही है तू
    इन में से कुछ भी नहीं सिर्फ़ फ़सादी है तू

    आज जिस तरह की विश्वस्तरीय दहशतगर्दी मची हुई है उसके मद्देनजर खरी खरी ही सुनाने का वक्त आ गया है। ये बताने का वक्त कि जेहनजदा लोग अम्न और भाईचारा के पक्ष में तब भी थे, अब भी हें और हमेशा रहेंगे.
    बेहद उम्दा प्रस्तुति

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  20. बेहतरीन लिखा है आपने।

    सादर
    -----
    जो मेरा मन कहे पर आपका स्वागत है

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  21. वास्तव मे सहेजे जाने योग्य्……सार्थक अभिव्यक्ति।

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया