मोआशरे के हालात और रिश्तों के ताने -बाने बुनती हुई इस ग़ज़ल के साथ एक बार फिर आप की तन्क़ीद और दुआएं समेटने की उम्मीद में ......................
......................अपने छूट जाते हैं
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न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं
सिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं
नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमां
ये वो शैतां हैं, जो मासूम ख़ुशियां लूट जाते हैं
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं
’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
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रेग ए सहरा= रेगिस्तान की ज़मीन ; चश्मे = निर्झर ; संग ओ ख़िश्त = पत्थर और ईंट
बुनियाद = नींव ; मसकन = घर,निवास स्थान
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’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
जवाब देंहटाएंबहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
बहुत शानदार..वाह!
ACHCHI GAZAL ...
जवाब देंहटाएं" ’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ परबहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं "
जवाब देंहटाएंगुनगुनाने का दिल करता है !
गज़ब ,बेहतरीन दिल को छू जाने वाली रचना , मुबारक बाद कबूल करें !
नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमां
जवाब देंहटाएंये वो शैतां हैं, जो मासूम ख़ुशियां लूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
निशब्द हूँ खास कर न दीवार उठाना---- वाले शेर पर । दिल को छू गयी गज़ल बहुत बहुत शुभकामनायें,अभार।
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
जवाब देंहटाएंअगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
एक शेर में खुद्दारी और दूसर में नसीहत किस ख़ूबसूरती से पिरोई है आपने के दिल वाह वाह कर उठा है...सिर्फ ये दो शेर ही नहीं हर शेर इस ग़ज़ल का कमाल का है...इस बेजोड़ ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए अलफ़ाज़ कहाँ से लाऊं...वाह...मेरी ढेर सारी दाद कबूल करें...
नीरज
"नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं"
जवाब देंहटाएंकाश कि यह सब समझ जाएँ ! बेहद उम्दा नज़्म !
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जवाब देंहटाएंग़ज़ल की रंगत
जवाब देंहटाएंग़ज़ल का लहजा
ग़ज़ल कहने की खूबसूरती
इन सब का असरदार इम्तेज़ाज नुमायाँ हो उठा है
आपकी इस ग़ज़ल में
ख़ास तौर पर ....
"हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं"
ये शेर ....
शाइर के azm को लोगों तक पहुंचा पाने में कामयाब हो पडा है
और ...
"लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं..."
ये अकेला मिसरा ही अपनी बात खुद कह रहा है
ग़ज़ल मौसूफ़ में काफियों की तंगी / सख्ती भी
आपकी जानिब से की गयी मेहनत पर हावी नहीं हो पायी है . . . .
मुबारकबाद
अरे!!!! इस्मत साहिबा, ये कमाल कैसे हो गया?
जवाब देंहटाएंआपकी गज़ल के दर्शन तो महीने भर इन्तज़ार के बाद होते हैं, ये तीन दिन पहले कैसे आ गई???
अब आ गई तो हमारा तो फ़ायदा ही है न-
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं
चंद शेर यहां जताने का मतलब ये नहीं कि बाकी अश’आर इनसे कमतर हैं... हर शेर बेहद खूबसूरत.
उम्मीद है, कि अगली बार तीन दिन और घट जायेंगे...
मोहतरमा ग़ज़ल क्या होती यह तो आपके ब्लॉग पर आकर पता चलता है....जादू है आपकी कलम में और कलाम में भी...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह इस ग़ज़ल को बार पढ़ा तब कहीं जाके करार आया ...एक एक शेर नगीने सा चमक रहा है......
नहीं दहशत गरों का कोई मज़हब या कोई ईमां
ये वो शैतां हैं, जो मासूम ख़ुशियां लूट जाते हैं
बिलकुकल दुरुस्त फ़रमाया.....आपने
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
ओहो.....क्या बात कह दी इन दो मिसरों में
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
कि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं
यह दोनों शेर लाजवाब हैं.......
(मैंने भी इसी तरह की एक ग़ज़ल लिखी थी ......किनारे टूट जाते हैं !)
’शेफ़ा’ आंखें हैं मेरी नम, ये लम्हा बार है मुझ पर
बहुत तकलीफ़ होती है जो मसकन छूट जाते हैं
बहुत ही शानदार मक्ता है.....! जिंदाबाद...!
नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
जवाब देंहटाएंकि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
माशाल्लाह ......क्या गज़ब लिखती हैं .....बहुत khoob ....!!
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं
'छूट का पत्थर' का खूब इस्तेमाल किया आपने ......
आपका हुनर gazal pe निखर आना है .....!!
बेह्तरीन गज़ल,शानदार अशआर, वाह वाह...
जवाब देंहटाएंहमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
जवाब देंहटाएंअगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
सुबहान अल्लाह.....
ये एक ऐसी तारीख़ी हक़ीक़त बयान की गई है,
जिसका कोई सानी नहीं है.
न रख रिश्तों की बुनियादों में कोई झूट का पत्थर
लहर जब तेज़ आती है ,घरौंदे टूट जाते हैं.
सच कहा आपने...
अपना एक शेर याद आ रहा है...
शक को कभी ये सोच के दिल में जगह न दी
बुनियाद तो यक़ीन है रिश्ता कोई भी हो.
ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है...मुबारकबाद
बहुत सुंदर ..वाह !
जवाब देंहटाएंहर शेर दिल में समा गया..
कम दिखती है इतनी प्यारी गज़ल।
न डालो बोझ ज़हनों पर कि बचपन टूट जाते हैं
जवाब देंहटाएंसिरे नाज़ुक हैं बंधन के जो अक्सर छूट जाते हैं
bahut hi khoobsurat....
Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....
A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...
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नहीं दीवार तुम कोई उठाना अपने आंगन में
जवाब देंहटाएंकि संग ओ ख़िश्त रह जाते हैं ,अपने छूट जाते हैं
बहुत सलीके से दी गयी सीख....
आप जैसे बड़ों का कहा सर माथे पर..
हमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
इसे पढ़कर गौतम की याद आ गयी...
ऊपर नयी ग़ज़ल के नीचे कमेंट्स डिलीट होने की बात पढ़ी तो दोबारा यह पोस्ट खोली..
देखा तो हमारा भी कमेन्ट नदारद था...
:)
इस गजल के सारे शेर एक से एक अच्छे हैं। ये वाला शेर तो आशीष ने अपने जीमेल स्टेटस पर लगा रखा है:
जवाब देंहटाएंहमारे हौसलों का रेग ए सहरा पर असर देखो
अगर ठोकर लगा दें हम, तो चश्मे फूट जाते हैं
बधाई!
अच्छी ग़ज़ल कही है. बधाई.
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