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सोमवार, 30 नवंबर 2009

ek ghazal

एक ग़ज़ल हाज़िरे ख़िदमत है |

'ग़ज़ल'

मुनफ़रिद है वो ज़माने को बताया उसने
क्या है हुब्बुलवतनी कर के दिखाया उसने

वो ख़ुशी मिल गयी जिस का मुतमन्नी था दिल
चंद रोते हुए बच्चों को हंसाया उसने

दर्स ओ तदरीस ज़रूरी है तरक्क़ी के लिए
जा के मजदूर के बच्चों को पढ़ाया उसने

अब नहीं कोई भी मालिक न यहाँ कोई ग़ुलाम
अपनी काविश से ये तफरीक मिटाया उसने

थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने

जब भी माज़ी में गया ,जल्द न वापस लौटा
चंद लम्हों को जिया ,ख़्वाब चुराया उसने

जब 'शेफ़ा' भूल गयी अपने तमद्दुन का मेज़ाज
अपनी क़ुर्बानियों से याद दिलाया उसने

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14 टिप्‍पणियां:

  1. थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
    आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने
    बहुत सुन्दर गज़ल, एकाध अशुद्धि को छोड कर. इस्मत, कुछ कठिन शब्द जो गज़ल में इस्तेमाल हो रहे हैं, उनका हिन्दी अर्थ भी यदि तुम गज़ल के नीचे दो तो बहुत अच्छा हो. वैसे ये केवल एक सलाह है.

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  2. Ismat Ji,

    Bhaut hi pyari ghazal likhi hai aapne...mujhe yeh she'r bahot hi pasand aaye ...
    वो ख़ुशी मिल गयी जिस का मुतमन्नी था दिल
    चंद रोते हुए बच्चों को हंसाया उसने

    दर्स ओ तदरीस ज़रूरी है तरक्क़ी के लिए
    जा के मजदूर के बच्चों को पढ़ाया उसने

    अब नहीं कोई भी मालिक न यहाँ कोई ग़ुलाम
    अपनी काविश से ये तफरीक मिटाया उसने
    Badhaai ..... Surinder

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  3. इस्मत साहिबा,
    पूरी ग़ज़ल अपनी जगह
    लेकिन

    'थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
    आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने'

    सुबहान अल्लाह...
    हौसले के इस शेर में क्या कह गयीं हैं आप!
    सच बतायें,
    इस शेर को कितना बेशकीमती आंका है आपने...
    मुझे तो हासिले-ग़ज़ल लगा है
    वाकई..
    मुबारकबाद
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  4. vandana ,lafz mutamanni -tamanna se bana hai aur mutmain lafz - itmeenan se .isliye ye ashuddhi nahin hai ,tum ne is taraf mera dhyan aakarshit kiya hai ,shukriya aainda main kathin shabdon ke arth likhne ki koshish karoongi.

    shukriya surindar ji,aap ke shabd protsahit karte hain .

    bahut bahut shukriya shahid sahab,ji han mujhe bhi apna ye sher pasand hai .lekin aap ki taareef is ki qeemat men ezafa kar rahi hai.

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  5. सुन्दर गजल! अपना ब्लाग शुरू करने की बधाई!

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  6. जब भी माज़ी में गया ,जल्द न वापस लौटा

    चंद लम्हों को जिया ,ख़्वाब चुराया उसने
    bahut sundar gazal tumahari rachna to mujhe waise bhi priye hai ,thodi busy rahi ,aapki jagah tum kahne ki izazt hai phir aur aage badhu

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  7. *dhanvad anup ji

    *dhanyavad jyoti ,'tumhen' ijazat lene ki zaroorat bilkul bhi nahin hai,han aap se tum par aane men shayad ham logon ko thodi der hi ho gayi hai.

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  8. सबसे पहले तो आप अपनी बेहतरीन ग़ज़ल की मुबारकबाद कुबूल करें....
    क्योंकि मेरे लिए यह तय कर पाना ज़रा मुश्किल है की कौन सा अशार ज्यादा अच्छा है...
    आखरी शेर में लफ्ज़ "तमद्दुन" का क्या मायने है... समझ नहीं सका. HASAN ZAMIN

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  9. गजल के सभी शेर बहुत पसंद आए ।
    जब 'शेफ़ा' भूल गयी अपने तमद्दुन का मेज़ाज
    अपनी क़ुर्बानियों से याद दिलाया उसने

    आपसे गुजारिश है कि मेरे जैसे नौसिखियों के लिए गजल के नीचे कुछ कठिन शब्‍दों के अर्थ भी दे दिया करें ।
    जैसे इस बार इनके अर्थ : मुनफ़रिद,हुब्बुलवतनी,तदरीस,काविश,तफरीक,तमद्दुन इससे हमारा उर्दू शब्‍दों का ज्ञान भी बढेगा ।

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. arkjesh ji maaf keejiyega ye kaam mujhe pahle hi kar lena chahiye tha ,chaliye jab jagen tab savera .

    munfarid =alag
    hubbulwatani =deshprem
    tadrees= shikshan
    kavish=koshish
    tafreeq = difference
    tamaddun = samaj men rahne ka tareeqa

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  12. थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
    आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने

    इस्मत जी वाह वा वा...वाह वा..वा...वाह वा वा...वाह वा वा ...वाह वा वा ...वाह वा.वा ...जितनी बार भी लिखूं कम ही रहेगा...बेमिसाल शेर...
    नीरज

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  13. थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
    आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने
    अब नहीं कोई भी मालिक न यहाँ कोई ग़ुलाम
    अपनी काविश से ये तफरीक मिटाया उसने
    बेहतरीन ग़ज़ल है और इसको समझना भी आसान.
    आपको नए कलाम का हमेशा इंतज़ार रहता है.महीने में ६ से काम चला लेंगे हम लोग.

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  14. बहुत खूब! मैं पहले भी यहां चुका हूं। आज दुबारा देखा बहुत अच्छा लगा।
    थी वो इक नन्ही सी चिड़िया जिसे ख़ुद पर था यक़ीं
    आग को चोंच के पानी से बुझाया उसने

    दूसरा वाला शेर पढ़कर निदा फ़ाजली का शेर याद आ गया। ...किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये। :)बहुत खूब!

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ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया