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शनिवार, 19 जून 2010


  एक ग़ज़ल हाज़िरे ख़िदमत है ,उम्मीद है हर बार की तरह इस बार भी आप लोग अपने  क़ीमती मशवरों और मुफ़ीद सलाहों से नवाज़ेंगे ,
चंद बिखरे हुए से ख़यालात और अल्फ़ाज़ हैं जिन्हें यकजा करने की ये कोशिश आप को किस हद तक पसंद आएगी ये तो मुझे नहीं मालूम ,बस आने वाले वक़्त का इंतेज़ार है जो इस पहेली को हल करेगा ,
शुक्रिया I                                                                         



..........रूदाद सुनाने बैठ गए
-------------------
बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए 
क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

जाने कैसा दर्द छुपा था आहों में
थाम के दिल हम उस के सरहाने बैठ गए

उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म ए होश रुबा
हम तो नाज़ुक ख़्वाब सजाने बैठ गए

हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए 

उन का मक़सद सिर्फ़ सियासत ,छोड़ो भी
क्यों उन को रूदाद सुनाने  बैठ गए 

’शेफ़ा’ न जब सह पाए हम बेगानापन
ग़लती उस की थी ,प मनाने  बैठ गए 

-------------------------------------------------------------------------
तिलिस्म=जादू
होश  रुबा=होश उड़ा देने वाला
मन्तिक़=  दर्शन (फ़िलॉसफ़ी)
रूदाद= कहानी , कथा   
    

38 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया ! पढ़ते ही लगा जैसे कुछ चित्र सामने से गुज़र गए ! गज़ब की ताकत है आपमें अपनी अभिव्यक्ति सम्प्रेषण की ! हार्दिक शुभकामनायें !

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  2. बहुत खूब, हर एक शेर लाजवाब। बधाई

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  3. kamaal ka likhti hai ,koi jawab nahi ,har ek sher dil me basne wali lagi ,sochti rahi kise achcha kaha jaaye magar saari panktiyaan hi vajandaar hai ,kuchh baate to man me thahar gayi .khoobsurat .

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  4. उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

    बहुत सही. कुछ लोगों का शगल होता है ये तो.

    ’शेफ़ा’ न जब सह पाए हम बेगानापन
    ग़लती उस की थी ,प मनाने बैठ गए

    होता है. यूं भी होता है. अक्सर होता है. जीवन के बहुत करीब की गज़ल. सभी शेर बहुत सुन्दर.

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  5. बेशक़ीमती गौहर और सितारे हैं
    आ'कर हम ’शेफ़ा’ के ठिकाने बैठ गए


    वाह शेफ़ाजी
    एक एक अश्आर में मोती पिरोये हैं …
    "उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए"

    …और नाज़ुक ख़्वाबों को सजाता यह शे'र …!
    मर्हबा !!
    "वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म ए होश रुबा
    हम तो नाज़ुक ख़्वाब सजाने बैठ गए"

    क्या अंदाज़े-सुख़न है…
    "हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए"

    आपके यहां आना सार्थक हो गया … बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  6. बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

    उन का मक़सद सिर्फ़ सियासत ,छोड़ो भी
    क्यों उन को रूदाद सुनाने बैठ गए

    मतले से मकते तक के इस हसीन सफ़र में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत शेरों के मंज़र देखने को मिले...ये कमाल सिर्फ आपकी कलम ही कर सकती है...इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूल करें...
    नीरज

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  7. अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
    अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

    मरहबा....क्या खूब अंदाज़े-बयां है

    उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

    इस्मत साहिबा, आसान से अल्फ़ाज़ में
    गहरी बात कहने का हुनर पेश किया है आपने
    बहुत बहुत मुबारकबाद.

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  8. अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
    अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

    जाने कैसा दर्द छुपा था आहों में
    थाम के दिल हम उस के सरहाने बैठ गए
    वाह ... सुभान अल्ला .. ग़ज़ब की ग़ज़ल है ... हर शेर में कमाल की अदायगी ... माकूल ग़ज़ल ... इंसानी जज्बातों को ज़ुबाँ दे दी है आपने ..... बहुत बहुत मुबारक इस्मत जी इस ग़ज़ल पर .....

    ये दोनो शेर बहुत ही उम्दा हैं ...

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  9. वाह,

    ये आपकी शायरी का तिलिस्म ही है जो लोगों को बार बार इस ब्लॉग पर आने को मजबूर करता है

    ये शिकायत ज़रूर रही कि इस बार बहुत दिन तक आपने नई गजल से हमारी मुलाकात न करवाई मगर इस पोस्ट के बाद, इस गजल को पढ़ने के बाद, सारी शिकायतें कपूर हो गईं और आपकी गजल वो रोशनी जिसने कपूर को हवा में घोल दिया और एक भीनी महक फ़िज़ा में तैर गई

    बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

    हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए

    ये दो शेर मुझे खास पसंद आये

    एक और बात है जो मुझे मजबूर कर रही है कि आपका शुक्रगुजार होऊ

    वो है उर्दू के कठिन शब्दों के अर्थ बताना

    कई बार होता है कि हम हिंदी वाले इस बात में ही उलझे रह जाते हैं कि मन्तिक़ का क्या अर्थ होगा और गजल पढ़ने का चाव खत्म हो जाता है

    एक बार फिर से बहुत बहुत शुक्रिया

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. hamesha ki tarah bahut khoobsorat gazal kahi hai aap ne.mubarak ho.

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  12. जाने कैसा दर्द छुपा था आहों में
    थाम के दिल हम उस के सरहाने बैठ गए

    उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

    आप की गज़ल बडी खूब्सूरत है .
    सारे शेर अच्छे हैं .

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  13. सारी ही ग़ज़ल खूबसूरत है..
    हर शे'र ही एक से बढ़कर एक....



    लेकिन मक्ता......एक बार नजर क्या पड़ गयी..कि निगाहें बार बार वहीँ पे आ फिसल रहीं हैं...

    शेफा न जब सह पाए हम बेगाना पन..
    गलती उसकी थी प मनाने बैठ गए....!

    इसकी तारीफ़ के लिए कोई तरीका नहीं..कोई उपाय नहीं....
    इस मकाम पर भी जिंदगी आई है अपनी.....इसीलिए...बस...पढ़े जा रहे हैं इस नायाब शे'र को....
    जैसे लिखने वाले ने हमारा दिल निकाल के रख दिया हो इस शे'र में...

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  14. बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

    उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

    आसान और सादा अलफ़ाज़ में
    दिलों में बसी संजीदा बात कह लेना
    फिर उस बात को अलग-अलग शेर में बखूबी बाँधना ,,,,
    सच में बहुत मशक्क़त की बात है ...
    और ये मेहनत दिख रही है
    सिनफ़-ए-ग़ज़ल की
    क़दीम तर्ज़-ए-अदा को बनाए रखने में
    आपका तआव्वुन हमेशा सराहा जाएगा
    मुबारकबाद

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  15. इस्मत जी, आप बहुत अच्छा लिखती हैं. ऐसे शेर जिन्हें बार-बार पढने को जी करे.

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  16. इस्मत,
    अच्छी पंक्तियाँ ! मन को छूनेवाली !
    बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए !
    जान-बूझकर खुद को लगाए गए जख्म बड़ी मीठी और मारक पीड़ा देते हैं ! भोगा हुआ सच है, अच्छा लगा--मरहम-सा !
    भाई ही--आ.

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  17. बेहद उम्दा नज़्म है | हर एक शेर दिल को छूता है ! बहुत बहुत शुभकामनाएं !

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  18. बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

    क्या बात है... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति
    अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
    अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

    बेहतरीन ग़ज़ल !

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  19. वाह! दुआ पढ़ने बार बार आता था...लगता है यह गज़ल भी मुझे कई बार यहाँ बुलाएगी.
    मतला ही जोरदार है...
    बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए
    ..और फिर एक-एक कर हरेक शेर एक से बढ़कर एक ..वाह!

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  20. main teen baar aakar laut gayi aur aapki nai post jo meri list me nazar aa rahi hai magar yahan nahi ,shuru ke 3-4 line padhi achchhi lagi magar poori padhti to chain milta .vandana ke yahan jaati hoon padhne .

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  21. sabhee juda juda sa mahsoos kar rahe hai aapke hr sher se........
    seedhe gil me samaa gaye........

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  22. किसी गुमनाम शायर के मिसरे हैं--- "तुम जिस चिंगारी को छू लो उड़े और जुगनू बन जाए", गजब की गजल पेश की. हालात, नफसियात, जज़्बात की जो अक्कासी आपने अशआर की शक्ल में पेश की है, दूसरों के लिए एक मुश्किल मरहला है. मैं हैरत और सकते का शिकार हूँ. समझ नहीं पा रहा हूँ कि क्या कहूं. फिलहाल, इस कामयाब गजल के लिए मुबारकबाद.
    देर से आया हूँ, गैर हाज़िर भी रहा हूँ, आगे भी रहूँगा, मुआफ तो कर ही देंगी.

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  23. पूरी गजल पसंद आई । वाकई में बहुत खूब कही है आपने

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  24. आज दिनों बाद आना हो पा रहा है इधर...

    मक्ते ने जैसे अपनी कहानी ही बयान कर दिया है और अब सोच रहा हूं कि काश कि ये शेर मैम्ने कहा होता... :-)

    अब पिछली छूट गयी पोस्टों पर जाता हूं।

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  25. हम ने तो एक सीधी-सच्ची बात कही,और वो मान्तिक समझाने बैठ गये .
    बहुत खूब...इस तरह के लोगों से मेरा अनेकों बार सामना हुआ है..हर शेर अपने आप मै लाजवाब है..

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  26. आप सब जो मेरे ब्लॉग पर तशरीफ़ लाए ,अपना क़ीमती वक़्त सर्फ़ किया और दुआओं से नवाज़ा ,,उस के लिये बहुत बहुत शुक्रिया

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  27. सॉरी मैम,
    व्यस्तता ने टिप्पणी नहीं करने दी ग़ज़ल, तो पहले ही पढ़ चुका था....पढ़ क्या चुका था...सात आठ बार पढ़ चुका था....क्या खूब लिखतीं हैं आप. एक एक शेर अपने आप में निराला होने का एहसास दिलाता है.मक्ता ता मतला अपनी खूबसूरत बयानी का एहसास दिलाता है

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  28. ेआज दोबारा पढने आयी हू बहुत खूब। धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  29. बीती बातें फिर दोहराने बैठ गए
    क्यों ख़ुद को ही ज़ख़्म लगाने बैठ गए

    अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
    अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

    जाने कैसा दर्द छुपा था आहों में
    थाम के दिल हम उस के सरहाने बैठ गए

    उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए

    वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म ए होश रुबा
    हम तो नाज़ुक ख़्वाब सजाने बैठ गए

    हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए

    इस्मत जी हर इक शे'र लाजवाब है ....कहीं कोई कमी नहीं .....!!

    जवाब देंहटाएं
  30. जाने कैसा दर्द छुपा था आहों में
    थाम के दिल हम उस के सरहाने बैठ गए
    उस ने बस हमदर्दी के दो बोल कहे
    दुनिया वाले बात बनाने बैठ गए
    वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म
    उन का मक़सद सिर्फ़ सियासत ,छोड़ो भी
    क्यों उन को रूदाद सुनाने बैठ गए


    यूं तो पूरी ग़ज़ल बेहतरीन पर
    ये शेर चुने बिना रहा न गया

    जवाब देंहटाएं
  31. वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म ए होश रुबा
    हम तो नाज़ुक ख़्वाब सजाने बैठ गए

    हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए ....

    waah-waa !
    ji haaN phirse !!

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  32. हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए

    ’शेफ़ा’ न जब सह पाए हम बेगानापन
    ग़लती उस की थी ,प मनाने बैठ गए

    Yeh do ashaar atyadhik pasand aaye .. bahut khoobsoora ban pade hain .. khaaskar makta.

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  33. साखी पर ग़ज़लों को आपका अपनत्व पाकर मैं धन्य हूं. आपकी कृपा आगे भी प्राप्त होती रहेगी ऐसा विश्वास है मुझे.
    इस ग़ज़ल को पहले पढ़कर जा चुका हूं लेकिन तकनीकी त्रुटि के कारण कमेन्ट नहीं दे पाया.
    वो नज़रें थीं या कि तिलिस्म ए होश रुबा
    हम तो नाज़ुक ख़्वाब सजाने बैठ गए

    उन का मक़सद सिर्फ़ सियासत ,छोड़ो भी
    क्यों उन को रूदाद सुनाने बैठ गए

    अभी अभी तो लब पे तबस्सुम बिखरा था
    अभी अभी फिर अश्क बहाने बैठ गए?

    कमाल के अशआर हैं. कहन बहुत उम्दा है.

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  34. बहुत सुन्दर शेर हैं। यह वाला तो हमारे ऊपर अक्सर सच बैठता है:
    हम ने तो इक सीधी सच्ची बात कही
    और वो फिर मन्तिक़ समझाने बैठ गए

    और यह तो और भी सच्ची बात है:
    ’शेफ़ा’ न जब सह पाए हम बेगानापन
    ग़लती उस की थी ,प मनाने बैठ गए

    जवाब देंहटाएं

ख़ैरख़्वाहों के मुख़्लिस मशवरों का हमेशा इस्तक़्बाल है
शुक्रिया